Shri Gopinath Ji (श्री गोपीनाथजी)
श्री गोपीनाथजी
यदनुग्रहतोजन्तुः सर्वदुःखातिगोभवेत्।
तमहं सर्वदा वन्दे श्रीमद् वल्लभनन्दनम्॥
श्री गोपीनाथजी प्रभुचरण का प्राकट्य जगद्गुरू श्रीवल्लभाचार्य श्रीमहाप्रभुजी के ज्येष्ठात्मज के रूप में विक्रमसंवत् १५६७ अश्विन कृष्ण द्वादशी के शुभदिन इलाहाबाद के समीप अड़ेल नामक स्थान पर हुआ।
श्री गोपीनाथजी बड़े ही गम्भीर, तेजस्वी एवं धर्मपरायण थे। आप नित्य श्रीमद् भागवत महापुराण के संपूर्ण १८००० श्लोकों का परायण करने के पश्चात ही अन्न ग्रहण करते थे। अतः श्रीमहाप्रभुजी ने श्रीपुरूषोत्तमसहस्त्रनाम ग्रन्थ श्रीगोपीनाथजी के लिये प्रकट किया जिसके पाठ से सम्पूर्ण श्रीमद् भागवतपरायण पूर्ण मानी जाती है। श्रीमद् वल्लभाचार्यजी के आसुराव्योहमोहलीला के पश्चात श्री गोपीनाथजी पुष्टिमार्ग के प्रधान आचार्य बनें और बड़ी ही कुशलता से पुष्टिमार्ग के आचार्य के रूप में नेतृत्व किया।
श्री गोपीनाथजी के एक पुत्र श्री पुरूषोत्त्मजी एवं दो पुत्रियां श्रीसत्यभामा बेटीजी एवं श्री लक्ष्मी बेटिजी हुए। श्री गोपीनाथजी ने साधनदीपिका नामक एक सुंदर ग्रन्थ की रचना की साथ ही श्रीमहाप्रभुजी द्वारा विरचित विभिन्न ग्रन्थों पर टीकाएं भी लिखी। श्री गोपीनाथजी का पुष्टिमार्ग के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।