Goswami Shri Devkinandan Ji Maharaj
नित्य लीलास्थ पूज्यपाद गोस्वामी श्री १०८ श्री देवकीनन्दनजी महाराजश्री का प्राकट्य पुष्टिमार्गीय प्रणालिकानुसार द्वितीय पीठाधीष्वर पूज्यपाद गोस्वामी श्री १००८ श्री गिरधरलालजी महाराजश्री के तृतीय पुत्र के रूप में हुआ। बाल्यकाल से ही आपश्री की विशेष रूचि प्रभु सेवा एवं पुष्टि साम्प्रदायिक अध्ययन में रही। महाराजश्री की शास्त्रीय संगीत मुख्यतः पखावज वादन, वायलीन, सरोद, हवेली संगीत एवं ध्रुपद गायन में होने के साथ-साथ शास्त्र दर्शन एवं सनातन हिन्दू धर्मी गतिविधियों में भी तत्परता थी। ब्रज में विराजित श्री गिरिराजजी में महाराजश्री की अत्यंत आसक्ति रही।
पूज्य महाराजश्री पुष्टिमार्गीय साहित्य एवं सनातन हिन्दू धर्मी शास्त्रों के मूर्धन्य ज्ञाता एवं शास्त्रोक्त गतिविधियों एवं प्रणालिकाओं के प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ-साथ श्रीमद् भागवत रस मर्मज्ञ रहे। श्रीमद् वल्लभाचार्यजी विरचित श्री सुबोधिनीजी (श्रीमद् भागवत की टीका) पर महाराजश्री का संपूर्ण अधिकार रहा। महाराजश्री के हृद्यस्थ होने वाले कर्णप्रिय वचनामृतों का आस्वादन करने के लिए संपूर्ण वैष्णव सृष्टि सदैव लालायित रहती थी।
श्रीमद् वल्लभाचार्यजी द्वारा स्थापित पुष्टिमार्ग के प्रचार – प्रसार एवं पुष्टिमार्गीय वैष्णवों पर कृपा करने हेतु पूज्य महाराजश्री ने विभिन्न कार्य किये। पखावज वादन के साथ ही पूज्य महाराजश्री गायन कला में भी पारंगत रहे। आप प्रति गुरूवार एवं रविवार वैष्णवों को पुष्टिमार्गीय पद गायन का प्रशिक्षण दिया करते थे। सदैव सेवा की ओर वैष्णवों को प्रेरित करना महाराजश्री का सहज स्वभाव रहा। महाराजश्री द्वारा गाये गए पदों की सीडी का प्रकाशन भी समय-समय पर किया गया। वैष्णवों पर सहज अहैतु की कृपा करते हुए महाराजश्री ने भाव प्रबोधिका नामक श्रृंखलान्तर्गत विभिन्न सीडीयों का प्रकाशन भी किया। वैष्णवों के अत्यधिक अनुनय विनय को अंगीकार करते हुए आपश्री ने इसी क्रम में प्रश्नोत्तरी के रूप में सीडी का प्रकाशन भी किया जिसमें विभिन्न वैष्णवों द्वारा प्रस्तुत की गई जिज्ञासाओं का आपश्री ने भावपूर्ण एवं तार्किक समाधान किया। उक्त सीडी ना केवल वैष्णवों अपितु वल्लभकुल बालकों द्वारा भी अत्यधिक सराही गई। श्री गिरिराज बावा में अत्यधिक आसक्ति होने से आपश्री ने वर्ष २००८ में श्री गिरिराज बावा की दण्डवती परिक्रमा अपने सकल परिकर सहित सानन्द सम्पन्न की।
पूज्यपाद गो.श्री देवकीनन्दनजी महाराजश्री श्रीमदाचार्यचरण महाप्रभुजी के वंशज एवं वस्तुतः श्रीमहाप्रभुजी के स्वरूप ही थे। आपका जीवन श्रीकृष्णमय था। आपका अपार तेज और प्रेम, दर्शन करने वालों को आकर्षित कर लेता था। आपश्री की दिनचर्या वेदानुकुल थी। आप सदैव भारतीय संस्कृति एवं वैष्णव समाज की उन्नति के लिए कार्य करते रहे। आप भारतीय संस्कृति के इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगें। भारतीय समाज आपश्री का ऋण नहीं चुका सकता।
पुष्टि प्रसून मकरंद की सुमधुर सुगंध से संपूर्ण सृष्टि को आप्लावित करने की ओर अग्रसर महाराजश्री द्वारा ’श्री वल्लभ पुष्टि रस मण्डल’ का गठन वर्ष २०१० में किया गया। मण्डल द्वारा त्रैमासिक पत्रिका ””वल्लभ वाक्सुधा” का प्रकाशन किया जाता है। वर्तमान में इस पत्रिका के अनेकों नियमित पाठक है एवं इसका प्रसार विदेशो तक है। वस्तुतः अपने “रसो वै सः” स्वरूप का साक्षात् अनुभव कराते हुए महाराजश्री ने पुष्टि सृष्टि पर कृपा की अपरिमित वृष्टि कर सृष्टि को धन्यता प्रदान की है।
एक बार प्रवास (यात्रा) के दौरान महाराजश्री के दर्शन को बहुत से व्यक्ति आए जिनमें से कई नास्तिक / अवैष्णव भी थे। उनमें से एक व्यक्ति ने आपश्री से पुष्टिमार्ग / भारतीय धर्म दर्शन वाद तथा ईश्वर वाद पर शास्त्रार्थ करने लगा। महाराजश्री ने उस व्यक्ति से धर्म संबंधी / समर्थित वाद कर भारतीय दर्शन शास्त्र एवं धर्मशास्त्रों की सार्थकता एवं संपूर्णता का प्रतिपादन कर शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की।
महाराजश्री गौसेवा भी भगवत्सेवा की भांति अत्यंत तन्मयता एवं प्रीति से करते थे। गौसेवा में आपश्री की विशेष रूचि थी। आप अवसर विशेष पर अपने हाथ से ही गौसेवा करते थे एवं ऐसा करके परम आनन्दित होते थे। आपने अनेक गौदान किये तथा गौसेवा में सदैव तत्पर रहते थे। आपश्री का पक्षियों के प्रति भी अत्याधिक स्नेह रहा है। प्रकृति प्रेमी होने से आपके द्वारा पर्यावरण संरक्षण के भी कई कार्य किये गए।
महाराजश्री सनातन हिंदू धर्म तथा वैष्णव समाज की सुदृढ़ता हेतु सदैव प्रयासरत रहे। आपने विभिन्न संस्कार शिविरों का आयोजन कर वैष्णवों को अपने धर्म, संस्कृति एवं देशभक्ति से जोड़ने का पुनीत प्रयत्न भी किया। आपके द्वारा विभिन्न धर्म-सभाओं एवं सम्मेलनों में भी भाग लेकर धर्म स्थापनार्थ अनेक विषयों का उपदेश भी दिया गया। आप वैष्णव धर्म के आचार्य होने से वैष्णवों को दीक्षा देकर प्रभुसेवा, धर्मसेवा एवं देशसेवा में तत्पर होने की शिक्षा दिया करते थे। वैष्णव धर्म एवं पुष्टिमार्ग के संरक्षक के रूप में आपने अतुलनीय योगदान दिया।
महाराजश्री के पूज्य पिताश्री श्री गिरधरलालजी महाराजश्री पखावज वादन में पारंगत थे। महाराजश्री को पखावज वादन की प्रारंभिक शिक्षा अपने पूज्य पिताश्री से ही प्राप्त हुई। महाराजश्री ने नाना पानसे घराने की परंपरागत पखावज वादन की शिक्षा प्रसिद्ध मृंदगाचार्य श्री चुन्नीलालजी पंवार एवं श्री कृष्णदासजी बन्नातवाला से प्राप्त की।
महाराजश्री आकाशवाणी के टॉप ग्रेड के कलाकार रहे। आपश्री ने विश्वभर में आयोजित विभिन्न संगीत सभाओं एवं आयोजनों में अपनी कला के अद्वितीय प्रदर्शन से अनेक संगीत रसिकों के हृदय पर अमिट छाप छोडी है। महाराजश्री नानासाहेब पानसे घराने के अग्रगण्य कलाकार रहे। महाराजश्री को संगीत के क्षेत्र में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिसमें ध्रुपद कला केन्द्र द्वारा “पखावजश्री” कि उपाधि ऑल इंडिया रेडियो द्वारा आयोजित अखिल भारतीय संगीत स्पर्धा में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा विशेष प्रथम पुरस्कार, राजा छत्रपति सिंह जुदेव पुरस्कार, रस मंजिरी संगीतोपासना केन्द्र एवं ध्रुपद धाम जयपुर द्वारा “पंडित गोपालजी गोकुलचंद पुरस्कार” उल्लेखनीय है।
एक सुप्रसिद्ध संगीतकार के रूप में महाराजश्री ने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रतिष्ठित एवं सुप्रसिद्ध संगीत समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन किया जिनमें तानसेन समारोह – २००६, आकाशवाणी रेडियो संगीत सम्मेलन चेन्नई, आकाशवाणी संगीत सम्मेलन पटना, सप्तक अहमदाबाद द्वारा आयोजित विभिन्न सभाओं, बेहराम खां स्मृति समारोह जयपुर, दिल्ली दूरदर्शन के कार्यक्रम सुर-साधना, संस्कृति भवन भोपाल में कार्यक्रम, ध्रुपद मेला समारोह बनारस, भारत भवन भोपाल, वृन्दावन में आयोजित ध्रुपद समारोह, हरिदास संगीत समारोह एवं दूरदर्शन तथा रेडियों पर प्रसारित कार्यक्रम आदि प्रसिद्ध है। आपके द्वारा कुछ चलचित्रों (फिल्मों) एवं वृत्तचित्रों में भी संगीत दिया गया है। महाराजश्री ने कई विदेशी सीधे प्रसारण चैनलों (कार्यक्रमों) में भी अपनी प्रस्तुतियां दी।
संगीत के क्षेत्र में आपका अतुलनीय योगदान रहा। आप देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी मृदंगाचार्य के रूप में प्रसिद्ध रहे। आपकी संगीत साधना केवल मृदंग तक ही सीमित नहीं थी अपितु वायलिन, हारमोनियम, सरोद आदि में भी आप सिद्धहस्त थे। राग-रागनियों के विषय में आपको निगूढ़तम ज्ञान था। संगीत के अद्वितीय साधक के रूप में आप संपूर्ण संगीत जगत में विख्यात थे। जब आपश्री के नित्यलीला पधारने का समाचार आकाशवाणी के एक प्रसिद्ध संगीतकार को प्राप्त हुआ तो उनके मुख से बरबस ही यह शब्द निकल पड़े कि “संगीत के क्षेत्र में पखावज वादन की कला विधवा हो गई।“
महाराजश्री द्वारा जन कल्याण एवं समाज कल्याण के विभिन्न कार्य संपादित किये गए। महाराजश्री ने निर्धन कन्या विवाह, निष्किंचनों (गरीबों) की मदद, गौ-ब्राह्मण सेवा एवं बालकों के शिक्षणार्थ आर्थिक योगदान दिया। आपने पुष्टिमार्गीय दीक्षा प्रदान कर कई जीवों को अनुग्रहित एवं कृतार्थ किया।
पूज्य महाराजश्री के एक लालजी गोस्वामी श्री दिव्येशकुमारजी महाराजश्री एवं दो बेटीजी अ.सौ. भामिनी राजा एवं अ.सौ. शुभप्रदा बेटीजी है।
एक सुप्रसिद्ध संगीतकार के रूप में महाराजश्री ने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर विभिन्न प्रतिष्ठित एवं सुप्रसिद्व संगीत समारोहों में अपनी कला का प्रदर्षन किया जिनमें तानसेन समारोह-2006, आकाषवाणी रेडिया संगीत सम्मेलन चेन्नई, आकाषवाणी संगीत सम्मेलन पटना, सप्तक अहमदाबाद द्वारा आयोजित विभिन्न सभाओं, बेहराम खाॅं स्मृति समारोह जयपुर, दिल्ली दूरदर्षन के कार्यक्रम सुर-साधना, संस्कृति भवन भोपाल में कार्यक्रम, धु्रपद मेला समारोह बनारस, भारत भवन भोपाल, वंृदावन में आयोजित धु्रपद समारोह, हरिदास संगीत समारोह एवं दूरदर्षन तथा रेडियों पर प्रसारित कार्यक्रम आदि प्रसिद्ध है। आपके द्वारा कुछ चलचित्रों (फिल्मों) एवं वृत्तचित्रों में भी संगीत दिया गया है। महाराजश्री ने कई विदेषी सीधे प्रसारण चैनलों (कार्यक्रमों) में भी अपनी प्रस्तुति दी।
संगीत के क्षेत्र में आपका अतुलनीय योगदान रहा। आप देष ही नहीं अपितु विदेषों में भी मृदंगाचार्य के रूप में प्रसिद्ध रहे। आपकी संगीत साधना केवल मृदंग तक ही सीमित नहीं थी अपितु वायलिन, हारमोनियम, सरोद आदि में भी आप सिद्धहस्त थे। राग-रागनियों के विषय में आपको निगुढ़तम ज्ञान था एवं आप समयानुकुल रागों का रियाज किया करते थे। संगीत के अद्वितीय साधक के रूप में आप संपूर्ण संगीत जगत में विख्यात थे। जब आपश्री के देवलोकगमन का समाचार आकाषवाणी के एक प्रसिद्ध संगीतकार को प्राप्त हुआ तो उनके मुख से बरबस ही यह शब्द निकल पडे़ कि ”संगीत के क्षेत्र में पखावज वादन की कला विधवा हो गई।“
महाराजश्री द्वारा जन कल्याण एवं समाज कल्याण के विभिन्न कार्य संपादित किये गए। महाराजश्री ने निर्धन कन्या विवाह, निष्किंचनों (गरीबों) की मदद, गौ-ब्राह्मण सेवा एवं बालकों के षिक्षणार्थ आर्थिक एवं सांस्कारिक योगदान दिया। आपने पुष्टिमार्गीय दीक्षा प्रदान कर कई सेवकों को अनुग्रहित एवं कृतार्थ किया। संगीत कलाकारों में अग्रणी स्थान रखने वाले पूज्य महाराजश्री ने श्रावण शुक्ल नवमी गुरूवार तद्नुसार दिनांक 15 अगस्त 2013 के दिन ब्रह्ममुहुर्त में नित्य लीला (देवलोकगमन) में प्रवेष किया। पूज्य महाराजश्री की स्मृति सभी के हृदय पटल पर सदैव अक्षुण्ण रूपेण विराजित रहेगी।