Aacharyas (आचार्य)
श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी
श्री महाप्रभुजी के पितृचरण श्री लक्ष्मणभट्टजी एवं मातृ चरण श्री इल्लमागारूजी थे। श्री लक्ष्मणभट्टजी के पूर्वज श्री यज्ञनारायण भट्टजी को स्वयं प्रभु श्रीकृष्ण ने वरदान दिया था कि जब आपके कुल में सौ सोमयज्ञ पूर्ण होंगे तब स्वयं श्रीप्रभु आपके कुल में अवतार लेगें। उसी वरदान के फलरूप श्री वल्लभाचार्य महाप्रभुजी सौ सोमयज्ञ पूर्ण होने के पश्चात श्री लक्ष्मणभट्टजी के गृह में प्रकट हुए।
श्री गोपीनाथजी
तमहं सर्वदा वन्दे श्रीमद् वल्लभनन्दनम्॥
श्री गोपीनाथजी प्रभुचरण का प्राकट्य जगद्गुरू श्रीवल्लभाचार्य श्रीमहाप्रभुजी के ज्येष्ठात्मज के रूप में विक्रमसंवत् १५६७ अश्विन कृष्ण द्वादशी के शुभदिन इलाहाबाद के समीप अड़ेल नामक स्थान पर हुआ।
श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी)
जगतीतल उद्धार करवा प्रगट्या परमदयाल॥
श्रीगुसांईजी का प्रागट्य संवत् १५७२ पौष कृष्णनवमी शुक्रवार के शुभदिन चरणाट में हुआ।
पाण्डुरंग श्री विट्ठथलनाथजी की आज्ञा से श्रीमहाप्रभुजी ने गृहस्थाश्रम स्वीकार कर विवाह किया तदुपरांत महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी के यहाँ स्वयं प्रभु ही द्वितीय पुत्र श्री विट्ठलनाथजी के रूप में प्रकट हुए।
श्री गिरधरजी
श्रीगुसांईजी के प्रथमलालजी (सुपुत्र) श्री गिरधरजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १५९७ कार्तिक शुक्ल द्वादशी के शुभदिन श्रीमद् गोकुल में हुआ। श्रीगुसांईजी श्रीगिरधरजी को प्यार से ‘गोवर्धन’ नाम से सम्बोधित करते थे।
श्री गोविन्दरायजी
श्रीराणीजी रंजना रूडला, भक्त सकल विश्राम रे रसना॥
श्रीगुसांईजी के द्वितीय लालजी (सुपुत्र) श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १५९९ में अगहन कृष्ण अष्टमी के शुभदिन अड़ेल में हुआ। श्रीगुसांईजी श्री गोविन्दरायजी को प्यार से ‘राजाजी’ नाम से सम्बोधित करते थे।
श्री बालकृष्णलालजी
क्मललोचन कमलापति, छबि नहीं को ए समान रे रसना॥
श्रीगुसांईजी के तृतीयलालजी (सुपुत्र) श्री बालकृष्णलालजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १६०६ में अश्विन कृष्ण अष्टमी के शुभदिन हुआ। श्रीबालकृष्णलालजी के नेत्र, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर थे, अतः श्रीगुसांईजी आपश्री को ”राजीवलोचन” कहकर सम्बोधित करते थे।
श्री गोकुलनाथजी
श्रीपार्वती पति प्रेमशुं, शोभा सकल कुटुम्ब रे रसना॥
श्री गुसांईजी के चर्तुथलालजी (सुपुत्र) श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १६०८ में मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी के शुभदिन अड़ेल में हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”वल्लभ” नाम से सम्बोधित करते थे।
श्री रघुनाथजी
श्रीजानकी जीवन ए सदा, मध्यमणि रत्नमय हार रे रसना॥
श्री गुसांईजी के पंचमलालजी (सुपुत्र) श्री रघुनाथजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १६११ में कार्तिक शुक्लपक्ष द्वादशी के शुभदिन अड़ेल में हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”रामचन्द्र” नाम से सम्बोधित करते थे।
श्री यदुनाथजी
नाथते श्रीमहाराणीजी तणा, मुख माधुरी विलास रे रसना॥
श्रीगुसांईजी के षष्ठम्लालजी (सुपुत्र) श्री यदुनाथजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १६१५ में चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी के शुभदिन हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”महाराजा” नाम से सम्बोधित करते थे।
श्री यदुनाथजी के बहुजी श्रीमहाराणी बहुजी हुए। आपके पाँच लालजी एवं एक बेटीजी हुए।
श्रीयदुनाथजी ने ‘वल्लभदिग्विजय’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
श्री घनश्यामजी
नाथते कृष्णावति तणा, लीला नित्य अखण्ड रे रसना॥
श्रीगुसांईजी के सप्तमलालजी (सुपुत्र) श्री घनश्यामजी का प्राकट्य विक्रम संवत् १६२८ में कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी के शुभदिन हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”प्राणवल्लभ” नाम से सम्बोधित करते थे।
श्री घनश्यामजी सदैव श्रीमदनमोहनलाल प्रभु की सेवा में मग्न रहते थे। आपश्री के बहुजी श्रीकृष्णावती बहुजी हुए। आपके दो लालजी एवं एक बेटी जी हुए।
श्री हरिराय जी
नाऽराधि राधिकानाथो ,वृथा तज्जन्म भूतले।।”
जगतगुरु श्री महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य के वंश में श्री महाप्रभुजी से पांचवी पीढी में वि .सं. 1647 में श्रीमद् गोकुल में श्री हरिराय जी का प्राकट्य हुआ। श्री महाप्रभुजी के द्रितीय पुत्र श्री वि्ठललेश प्रभुचरण के आप प्रपौत्र हैं। श्री गुसांईजी के
द्रितीय पुत्र श्री गोविन्द रायजी के आप पौत्र और श्री कल्याण रायजी के आप पुत्र हैं।
नि.ली.द्वि.गृ.गो. श्री गिरधरलालजी महाराजश्री
द्वितीय गृह नाथद्वारा का इन्दौर गृह के साथ अति निकट का सम्बन्ध रहा है। द्वितीय गृहाधीश्वर श्री गोपेश्वरलालजी महाराजश्री ने स्वयं के पितृ गृह इन्दौर से अपने भ्राता श्री देवकीनन्दनजी महाराजश्री के पुत्र श्री कृष्णरायजी महाराजश्री के ज्येष्ठपुत्र श्री गिरधरलालजी महाराजश्री को सं. १९९४ को गोद लिया।