Pushtimarg (पुष्टिमार्ग)
पुष्टिमार्ग एक परिचय
पुष्टिमार्ग का अर्थ है अनुग्रह, कृपा। अतः पुष्टिमार्ग कहें अथवा अनुग्रह मार्ग कहें या कृपामार्ग कहें, एक ही बात है। श्री वल्लभाचार्यजी ने श्रीमद् भागवत आधार पर ”पुष्टि” शब्द प्रयुक्त किया है। भागवत स्कन्ध २ अध्याय १० के प्रथम श्लोक में भगवान् श्री कृष्ण की भागवत में वर्णित दस प्रकार की लीलाओं का उल्लेख है, जिनमें से एक लीला ‘पोषण‘ लीला है। वही श्लोक की व्याख्या में ‘पोषण‘ शब्द का अर्थ स्पष्ट किया है :-
अपने द्वारा सुरक्षित सृष्टि में भक्तों के उपर भगवान् की जो कृपा होती है, उसका नाम है ‘पोषण‘। ‘पोषणं तदनुग्रहः‘ अर्थात उनके (भगवान् के) अनुग्रह को पोषण कहते हैं। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि यद्यपि भगवान् सब जीवों पर ही कृपा करते हैं, किन्तु जो उनकी भक्ति करता है, उस पर उनकी विशेष कृपा होती है, वह उन्हें अधिक प्रिय होता है।
एक और बात ध्यान देने की है। ‘पुष्टिमार्ग‘ अथवा ‘कृपामार्ग‘ हम सबको निरभिमानिता भी सिखा रहा है। प्रत्येक के जीवन में जो भी घटे-बढ़ें, जो भी कार्य बन पावे, जो भी सफलता प्राप्त हो, हमें उसका श्रेय स्वयं को नहीं देना है, न ही स्वयं की कृति मानना है, इस सिद्धान्त को सामने रखते हुए और इस पर आचरण करते हुए हृदय से सदा यही मानना है, यही कहना है, यही स्वीकार करना है कि यह सब भगवद् कृपा से हुआ, जिन श्री वल्लभ ने इस सिद्धान्त से हमें परिचित किया, उन श्री वल्लभ की कृपा से हुआ, गुरूकृपा से हुआ। मन, वाणी कर्म से जीवन में यही व्यवहार करना है।
‘पुष्टिमार्ग‘ नाम से एक और आवश्यक बात प्रत्यक्षतः ध्वनित होती है। यह एक मार्ग है, एक रास्ता है, जीवन में चलने हेतु सही दिशा है। पुष्टिमार्ग में सन्निहित जो भी सिद्धान्त श्री वल्लभ द्वारा रखे गए, उन पर चलना है, उन्हें आचरण में लाना है, उन्हें जानने मात्र से काम नहीं चलेगा। पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों रूपी सड़क पर चलते जाओ, इधर-उधर भटकने उनसे मेल न रखने वाली अथवा उनसे विपरीत बातों पर चलने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं। इस मार्ग अर्थात् सड़क को नहीं छोड़ना है, दृढ़ता और विश्वासपूर्वक इस पर चलते रहना है। फिर श्री वल्लभ कृपा से आपके मानव – जीवन का प्रयोजन सिद्ध होने में, जीवन की सार्थकता में, भगवदानन्द की प्राप्ति में लेशमात्र भी सन्देह नहीं। आपने भगवद्-वाणी के आधार को पकड़ा है अतः भगवद् कृपा अवश्यम्भावी है। निश्चिन्त होकर चलते जाइए।
जिस प्रकार सारस्वत कल्प में श्रीकृष्ण ने ब्रज-भक्तों पर कृपा करणार्थ स्वतः श्री गोकुल में प्रकट हो उनके (ब्रजभक्तों के) अविद्या आदि दोषों को दूर करते हुए उन्हें विद्या रूपी प्रकाश देते हुए उनका अपने में पूर्ण निरोध करा उन्हें रास-लीला में अपने स्वरूपानन्द एवं सर्वोत्कृष्ट भजनानन्द का कृपा – दान किया, वैसी ही कृपा प्रभु आप हम पर भी करेंगे। यही तो प्रभु की यथार्थ पुष्टि है।